4 परती भूमि
वर्तमान परती जहां एक कृषि वर्ष या उससे कम समय से खेती नहीं गई हो
वर्तमान प्रति भूमि के अतिरिक्त अन्य प्रति भूमि या पुरानी प्रति जहां एक से पांच कृषि वर्षों से खेती में की गई
5 शुद्ध बोया गया क्षेत्र
एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बॉय गए क्षेत्र को शुद्ध बोया गया क्षेत्र में जोड़ दिया जाता है वह सकल कृषि क्षेत्र कहलाता है
भारत में भू उपयोग प्रारूप
भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.89 वर्ग किलोमीटर है परंतु इसके 93% भाग में ही धूप योग आंकड़े उपलब्ध हैं चौकी पूर्वोत्तर प्रांतों में असम को छोड़कर अन्य प्रांतों के सूची क्षेत्र के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है
भारत के कुल सूची क्षेत्र के लगभग 54% हिस्से पर ही खेती हो सकती है
शुद्ध बॉय गए क्षेत्र का प्रतिशत भी विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है पंजाब और हरियाणा में 80% भूमि पर खेती होती है पर उड़ना परंतु अरुणाचल प्रदेश मिजोरम मणिपुर और नागालैंड दीप समूह में 10% से भी कम क्षेत्रफल
राष्ट्रीय वन नीति 1952 द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र अवांछित है
भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय
हम भोजन मकान और कपड़े कि अपने मूल आवश्यकताओं का 95% भाग भूमि से प्राप्त करते हैं
इस समय भारत में लगभग 13 करोड हेक्टेयर भूमि निम्नीकरण है इसमें से लगभग 28% भूमि निम्नीकरण वनों के अंतर्गत है 56% क्षेत्र जल अपहृत है और शेष क्षेत्र लवणीय और छारीय है कुछ मानव क्रियाओं जैसे वनोन्मूलन अति पशु चारण खनन ने भी भूमि का निम्नीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
मृदा संसाधन
मिट्टी अथवा मरदा सबसे महत्वपूर्ण नवीकरणीय योग्य
प्राकृतिक संसाधन है कुछ सेंटीमीटर गहरी मिलता बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं मृदा बनने की प्रक्रिया में उच्चावच जनक शहर अथवा जलवायु वनस्पति चे पदार्थ समय महत्वपूर्ण कारक है प्रकृति के अनेक तत्वों जैसे तापमान परिवर्तन बहते जल की क्रिया पवन हिमनदी और अपघटन प्रक्रिया आदि मिलता बनने की प्रक्रिया में योगदान देती है
मृदा का वर्गीकरण
भारत में अनेक प्रकार के उच्चावच भू आकृतियां जलवायु और वनस्पति पाई जाती है इस कारण अनेक प्रकार की मृदा में विकसित हुई है
जलोढ़ मृदा
यह मृदा विस्तृत रूप से फैली हुई है और यह देश की महत्वपूर्ण मिलता है संपूर्ण उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है यह मुद्दा हिमालय की तीन महत्वपूर्ण नदी तंत्र सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निक्षेप से बनती है एक संकरे गलियारे के द्वारा यह मजेदार राजस्थान और गुजरात तक फैली है पूर्वी तटीय मैदान विशेषकर महानदी गोदावरी कृष्णा और कावेरी नदियों के डाटा में जलोढ़ मृदा से बने हैं
कणों के आकार या घटकों के अलावा मृतक की पहचान उनकी आयु से भी होती है आयु के आधार पर जलोढ़ मृदा को दो प्रकार की है
1, पुराने जलोढ़ या बांगर
बांगर मृदा में कंकर ग्रंथियों की मात्रा ज्यादा होती है
2, नया जलोढ़ या खादर इस मृदा में ज्यादा महीन कण पाए जाते हैं
जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है क्योंकि इसमें पोटेशियम फास्फोरस चुना युक्त होती है जो गन्ने चावल गेहूं अनाज दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है
काली मृदा
इन नेताओं का रंग काला और इन्हें रेगर मृदा भी कहा जाता है काली मृदा कपास की खेती के लिए उपयुक्त समझी जाती है काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है इस प्रकार की मृदा दक्कन पठार क्षेत्र के उत्तरी पश्चिमी भाग में पाई जाती है और लावा जनक सालों से बनी है यह मिलता है महाराष्ट्र छोरा मालवा मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है और दक्षिणी पूर्वी दिशा में गोदावरी और कृष्णा नदियों की घाटियों तक फैली है
इस मृदा में कैल्शियम कार्बोनेट मैग्नीशियम पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है
गर्म और शुष्क मौसम में इन मृदा में गहरे दरारे पड़ जाती हैं
लाल और पीली मृदा
लाल मिर्चा दक्कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों रवेदार आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में विकसित हुई है
यह मृदा ओडिशा छत्तीसगढ़ मध्य गंगा मैदान के दक्षिणी छोर पर और पश्चिमी घाट में पहाड़ी पद पर पाई जाती है
इन नेताओं का लाल रंग रवेदार आग्नेय और फिर रूपांतरित चट्टानों में लोहा धातु के प्रसार के कारण होता है इनका पीला रंग इनमें जलयोजन के कारण होता है
लेटराइट मृदा
लेटराइट शब्द
ग्रीक भाषा के शब्द लेटर से लिया गया है जिसका अर्थ है ईद लेटराइट मृदा का निर्माण उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंध जलवायु क्षेत्रों में आदर्श तथा शुष्क विधवाओं के एक के बाद एक आने के कारण होता है।
यह भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम है लेटराइट मिलता अधिकतर गहरी तथा अम्लीय होती है इसमें सामान्यता पौधों के पोषक तत्वों की कमी होती है यह अधिकतर दक्षिणी राज्य महाराष्ट्र के पश्चिम भागो ओडिशा पश्चिम बंगाल के कुछ भागों तथा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में पाई जाती है
इस मिट्टी में पर्वतीय और सदाबहार वन मिलते हैं वहां इसमें ही उमस पर्याप्त रूप से पाया जाता है
मरुस्थलीय मृदा
मरुस्थलीय मृदा ओं का रंग लाल और बुरा होता है यह मृदा आमतौर पर रेतीली और लवणीय होती है
शुष्क जलवायु और उच्च तापमान के कारण जलवा सुधर अधिक है और मृदा में ही उमस और नमी की मात्रा कम होती है
वन मृदा
यह मेरे दाएं आमतौर पर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती हैं जहां पर्याप्त वर्षा वन उपलब्ध हैं इन नेताओं के गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव आता है नदी घाटियों में ये मृदाएं दोमट ओर सिल्तदर होती है